मुंबई, 03 अगस्त, हिंदी साहित्य जगत के कालजयी कथा एवं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती के अवसर पर प्रतिष्ठित हिन्दी साहित्यिक पत्रिका “सृजनिका”, मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग तथा हिंदी विभाग की पत्रिका “शोधावरी” की ओर से हाल ही में मुंबई विश्वविद्यालय के क़लीना परिसर स्थित जे पी नाईक सभागार में आयोजित कहानी लेखन कार्यशाला एक गरिमापूर्ण समारोह के साथ सम्पन्न हुई।
गजानन महतपुरकर ने यहां जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस कहानी लेखन कार्यशाला में नई पीढ़ी की सक्रिय सहभागिता ने विद्यार्थियों में हिंदी साहित्य के प्रति अभिरुचि एवं सृजनधर्मिता को उल्लेखनीय रूप से समृद्ध किया।
बड़ी संख्या में मौजूद साहित्यकारों, साहित्य प्रेमियों और विद्यार्थियों के समक्ष समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता एवं भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी एडवोकेट दीनानाथ तिवारी उपस्थित रहे। उनके अलावा विशिष्ट अतिथि के रूप में रेमंड समूह के वरिष्ठ अधिकारी और कवि फ्रैंक पॉवेल तथा मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष डा. दत्तात्रय मुरुमकर ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए वर्तमान दौर में कहानी लेखन विधा के बढ़ते महत्व पर प्रकाश डाला। एडवोकेट दीनानाथ तिवारी ने अपने सम्बोधन में कहा कि हिंदी साहित्य की प्रगति यात्रा में नई पीढ़ी पूरी तन्मयता से भाग ले रही है। यह अत्यंत सुखद संकेत है। उन्होंने कहा कि “सृजनिका” एक उच्चस्तरीय साहित्यिक पत्रिका के रूप में निरंतर आगे बढ़ रही है।
डॉ. दत्तात्रेय मुरूमकर ने प्रेमचंद के कथा सम्राट बनने की यात्रा के बारे में रोचक ढंग से बताया। उन्होंने आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि आज के परिप्रेक्ष्य में ऐसी कार्यशालाओं और सेमिनारों का आयोजन नियमित रूप से होना चाहिये। उन्होंने पत्रिका को अपना हर सम्भव सहयोग देने का भरोसा दिलाया। अंग्रेजी में कविताऍं रचने वाले लोकप्रिय कवि फ्रैंक पॉवेल ने मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक मूल्यों को अपनी रचनाओं का आधार बनाने का सुझाव नवोदित लेखकों और विद्यार्थियों को दिया। वरिष्ठ लेखक एवं “सृजनिका” के सलाहकार सम्पादक डॉ. हुबनाथ पाण्डेय ने कहानी लेखन के गुर बताते हुए इसके विभिन्न मापदंडों की व्याख्या अपने प्रस्तावक सम्बोधन में प्रस्तुत की।
“सृजनिका” के सम्पादक एवं वरिष्ठ लेखक डॉ. अमरीश सिन्हा ने “सृजनिका” की अब तक की यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कहानी लेखन की प्रक्रिया में सम्बंधों की बुनावट को प्रधानता दें, न कि बनावटी जीवन को। उन्होंने अपने प्रेरणादायक सम्बोधन में कहा कि रचनाधर्मिता में लेखक की भूमिका एक बुनकर की होती है। वह अपने भावों को शब्दों से बुनता है, तभी एक अच्छी रचना तैयार होती है।
चर्चित बाल कथा लेखक समीर गांगुली और मार्मिक कहानियों की लोकप्रिय कथाकार डॉ. जया आनंद ने लेखन के विभिन्न आयामों के बारे में दिलचस्प तरीके से जानकारी दी और उन्हें प्रोत्साहित किया। “सृजनिका” के मुख्य उप सम्पादक राजेश कुमार सिन्हा ने मुंशी प्रेमचंद के बारे में उल्लेखनीय कविताऍं सुनाईं, जिन्हें काफी सराहा गया। डॉ. अवधेश कुमार राय ने प्रेमचंद की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला तथा “शोधावरी” पत्रिका की सम्पादक डॉ. भाग्यश्री वर्मा ने सृजनात्मक लेखन की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बताया।
डॉ. श्यामल बनसोड ने सृजनात्मक लेखन की उपयोगिता को दर्शाया। डॉ. नमिता निंबालकर ने रचनाकारों से लेखन में इंसानियत की कोमल भावनाओं को प्रश्रय देने का आह्वान किया। वरिष्ठ रचनाकार और मूर्धन्य मंच प्रस्तोता आनंद प्रकाश सिंह ने अपने प्रेरक सम्बोधन में अधिक से अधिक पढ़ने की ज़रूरत को अपनी आदत बनाने पर बल दिया। पूरे दिवस चली कार्यशाला के द्वितीय सत्र में कहानी लेखन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिसमें कुल सत्तर विद्यार्थियों और अन्य लेखकों ने भाग लिया। इस प्रतियोगिता में राजेश कुमार झा और भीमसेन सिंह को क्रमशः प्रथम और द्वितीय पुरस्कार मिला। रागिनी काम्बले और आसिया शेख़ संयुक्त रूप से तृतीय पुरस्कार की विजेता बनीं।
महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के कार्यकारी सदस्य एवं “सृजनिका” के मीडिया एवं जनसम्पर्क प्रभारी गजानन महतपुरकर ने मुंशी प्रेमचंद को समर्पित विशेष काव्य रचना प्रस्तुत कर सभी की सराहना बटोरी तथा अंत में अपनी विशिष्ट काव्यात्मक शैली में सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। “सृजनिका” के उप सम्पादक प्रिंस ग्रोवर ने उम्दा अंदाज़ में समूचे समारोह का कुशल संचालन किया। इस समारोह में पुष्पा चौधरी, साक्षी शर्मा, सदानंद चितले, प्रिया पोकले, श्रेया, सतीश धुरी, सीताराम दुबे, सुनीता नागपुरे, अनीता, शुभम श्रीवास्तव, प्रमोद और शहर के कई सक्रिय लेखकों के अलावा मुंबई विश्वविद्यालय के विभिन्न वर्गों के विद्यार्थी उपस्थित थे।