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Mumbai, Maharashtra , Feb 03, भारतीय रेल भाप से बिजली तक का सफर पूरा कर आज विद्युतीकरण के 100 साल पूरे होने का जश्न मना रही है।
मंडल की ओर से यां जारी प्रेस विज्ञप्ति को अनुसार भारतीय रेल का इतिहास नवपरिवर्तन और उन्‍नति की गाथा है, जो देश की प्रगति को दर्शाता है। चूंकि विद्युतीकरण की शुरुआत को 100 वर्ष पूरे हो चुके हैं, इसलिए भाप इंजन से लेकर बिजली के ट्रैक्शन की बिना शोर लेकिन शक्तिशाली पावर की यह यात्रा इंजीनियरिंग की श्रेष्‍ठता का  प्रमाण है।
3 फरवरी, 1925 को भारत ने एक महत्वपूर्ण घटना देखी- तत्‍कालीन भारतीय रेल नेटवर्क पर पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन की शुरुआत। विक्टोरिया टर्मिनस को कुर्ला से जोड़ने वाली यह पहली यात्रा एक निर्णायक मील का पत्थर साबित हुई, जिसने हमारे देश की जीवनरेखा के असीम भविष्य की एक झलक पेश की।
जैसे-जैसे हम इस शताब्दी वर्ष के करीब पहुंच रहे हैं, हम न केवल एक अग्रणी तकनीकी उपलब्धि का जश्न मना रहे हैं, बल्कि प्रगति की उस अदम्य भावना का भी जश्न मना रहे हैं जो भारतीय रेल की विशेषता बनी हुई है। 3 फरवरी, 2025 को हम इस ऐतिहासिक क्षण के विकास, लचीलेपन और विद्युतीकरण विरासत के सौ साल पूरे होने का जश्न मनाने के लिए एक साथ आएंगे।
भाप से डीजल तक: आधुनिकीकरण की शुरुआत: भारतीय रेल की कहानी 1853 में एक ऐतिहासिक क्षण से शुरू हुई: बोरीबंदर (अब मुंबई) और ठाणे के बीच 34 किलोमीटर की पहली यात्रा। आयातित भाप इंजनों द्वारा संचालित इन शुरुआती ट्रेनों ने कनेक्टिविटी के एक नए युग की शुरुआत की। हालाँकि, यह 1895 में हुआ था जब भारत ने एफ-क्लास स्टीम लोकोमोटिव के साथ अपनी औद्योगिक क्षमता का प्रदर्शन किया, जो अजमेर में निर्मित होने वाला पहला स्वदेशी इंजन था। 38 टन वजनी और ₹15,869 की लागत से निर्मित यह एक नवोदित राष्ट्र की इंजीनियरिंग महत्वाकांक्षाओं का प्रतीक था।
शुरुआती वर्षों में इनका महत्व होने के बावजूद भाप इंजन ने चुनौतियां पेश कीं। कोयले और पानी पर इनकी निर्भरता ने इन्हें परिचालन में बोझिल बना दिया और आधुनिक मानकों के अनुसार उनकी अक्षमता जल्द ही सामने आ गई। 20वीं सदी के मध्य में डीजल इंजनों का उदय हुआ, जिसने रेल परिवहन में क्रांति ला दी। YDM क्‍लास जैसे अधिक शक्तिशाली, विश्वसनीय और लागत प्रभावी डीजल इंजनों ने रेल को ऊबड़-खाबड़ इलाकों में जाने और दूरदराज के क्षेत्रों को जोड़ने में सक्षम बनाया, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला। फिर भी, इन इंजनों की भी सीमाएँ थीं, विशेष रूप से पर्यावरणीय स्थिरता में, जिसने एक स्वच्छ और अधिक कुशल समाधान- विद्युतीकरण का मार्ग प्रशस्त किया।
विद्युतीकरण: एक आदर्श बदलाव: भारतीय रेल का विद्युतीकरण 1925 में शुरू हुआ, जब विक्टोरिया टर्मिनस (अब छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस) और कुर्ला के बीच 1.5 kV DC सिस्टम पर पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन चली। यह परिवर्तनकारी कदम गति, दक्षता और पर्यावरण पर कम नकारात्‍मक प्रभाव का अग्रदूत था। इस प्रणाली ने अपने पूर्ववर्तियों की कई अक्षमताओं को समाप्‍त किया, जिससे एक टिकाऊ भविष्य की नींव रखी गई।
1957 में 25 kV AC ट्रैक्शन को अपनाने के साथ एक महत्वपूर्ण मोड़ आया, जो फ्रांसीसी विशेषज्ञता से प्रेरित एक तकनीक थी। इस उन्नत तकनीक ने ऊर्जा संचरण घाटे को नाटकीय रूप से कम किया, बिजली उत्पादन में वृद्धि की तथा लंबी और तेज़ ट्रेनों के परिचालन को सक्षम बनाया। बर्द्धमान-मुगलसराय और टाटानगर-राउरकेला खंड इस प्रणाली को अपनाने वाले शुरुआती खंड बन गए, जिससे विद्युतीकृत रेल के विस्तार में तेजी आई। इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन में बदलाव करके, भारतीय रेल ने न केवल अपने संचालन को आधुनिक बनाया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए।
तकनीकी उपलब्धियां: ABB और उससे आगे: भारतीय रेल के आधुनिकीकरण में एक महत्वपूर्ण क्षण 23 जुलाई, 1993 को आया, जब ABB ट्रांसपोर्टेशन (स्विट्जरलैंड) के साथ एक अनुबंध के तहत भारत में अत्याधुनिक लोकोमोटिव तकनीक की शुरुआत हुई। इस समझौते के तहत, उन्नत माल और यात्री इंजनों का आयात किया गया, साथ ही प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से स्वदेशी विनिर्माण संभव हुआ।
5,400 HP की पावर आउटपुट और 180 किमी/घंटा तक की गति वाला WAP5, 1995-96 में शुरू हुआ, जिसने अपनी ऊर्जा दक्षता और माइक्रोप्रोसेसर-आधारित नियंत्रणों के साथ रेल परिवहन में क्रांति ला दी। इसी तरह, 1996 में आए WAG9 फ्रेट लोकोमोटिव, अपनी 6,000 HP क्षमता के साथ भारी भार ढोने के लिए एक बेंचमार्क बन गया। इन नवपरिवर्तनों के बाद किए गए विकास कार्यों के लिए आधार तैयार किया, जिसमें WAP7 (यात्री सेवाओं के लिए) और WAG12B, भारी माल परिवहन के लिए डिज़ाइन किया गया 12,000 HP फ्रेट लोकोमोटिव शामिल है।
वंदे भारत एक्सप्रेस की शुरुआत ने भारतीय रेल की उपलब्धियों में एक और उपलब्धि जोड़ दी है। सेल्‍फ-प्रोपेल्‍ड इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट्स (EMU) की सुविधा वाली यह सेमी-हाई-स्पीड ट्रेन उन्नत प्रपल्‍शन सिस्‍टम, हल्के वजन वाली सामग्री और विश्वस्तरीय सुविधाओं के साथ 180 किमी/घंटा तक की गति प्रदान करती है। यह सिर्फ़ एक ट्रेन नहीं है, बल्कि भारत की इंजीनियरिंग और विनिर्माण क्षमता की भी  प्रतीक है।
उपनगरीय विद्युतीकरण: मुंबई अग्रणी: विद्युतीकरण केवल लंबी दूरी के मार्गों तक ही सीमित नहीं था। मुंबई का उपनगरीय रेल नेटवर्क तब अग्रणी बन गया जब इसने 1925 में 1,500V DC इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन की शुरुआत की, जो विक्टोरिया टर्मिनस (अब छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस) को कुर्ला से जोड़ता था। शहर की बढ़ती आबादी की परिवहन से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने वाले इस नेटवर्क ने शहर की गतिशीलता को आकार देने में अहम भूमिका निभाई।
इन ईएमयू के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए, 1928 में मुंबई सेंट्रल कारशेड की स्थापना की गई, उसके बाद 1984 में कांदिवली कारशेड की स्थापना की गई। 2012 में उद्घाटित विरार कारशेड एशिया में सबसे बड़ा कारशेड है। वानगांव में एक नई सुविधा की योजना के साथ, उपनगरीय प्रणाली निरंतर विकसित हो रही है, जो टिकाऊ और कुशल परिवहन की बढ़ती मांग को पूरा करती है।
स्थिरता (सस्टेनेबिलिटी) : पर्यावरण अनुकूल प्रयासों में अग्रणी
भारतीय रेल की सस्टेनेबिलिटी के प्रति प्रतिबद्धता 2030 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन प्राप्त करने के अपने लक्ष्य में स्पष्ट है। इस प्रयास का एक आधार हेड-ऑन जेनरेशन (HOG) सिस्टम है, जो ओवरहेड ट्रैक्शन लाइनों से सीधे बिजली खींचकर डीजल जनरेटर की आवश्यकता को समाप्त करता है। पश्चिम रेलवे ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है, जिसके तहत आने वाले सभी 162 LHB रेक अब HOG सिस्‍टम से लैस हैं। 2019 और 2024 के बीच इस परिवर्तन ने 57 लाख लीटर से अधिक डीजल की बचत की है, CO₂ उत्सर्जन में लगभग 15,400 मीट्रिक टन की कमी और लगभग ₹51 करोड़ की बचत की है।
एक और महत्वपूर्ण पहल कोचिंग यार्ड में 750 V AC बिजली आपूर्ति का उपयोग है, जिससे रखरखाव के दौरान डीजल की खपत और भी कम हो गई है। ये उपाय इस बात का उदाहरण हैं कि कैसे भारतीय रेल न केवल लागत कम कर रहा है, बल्कि एक पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान दे रहा है।
प्रपल्‍शन टेक्‍नोलॉजी में नवपरिवर्तन : भारतीय रेल ने दक्षता बढ़ाने के लिए लगातार तकनीकी प्रगति को अपनाया है। 2001 में थ्री-फ़ेज प्रपल्‍शन टेक्‍नोलॉजी की शुरूआत ने एक बड़ी छलांग लगाई। IGBT तकनीक पर आधारित ये सिस्टम कम ऊर्जा खपत, रिजेनरेटिव ब्रेकिंग और बेहतर विश्वसनीयता प्रदान करते हैं। हाई एक्सिलरेशन और कम रखरखाव सहित इनके लाभों ने शहरी और लंबी दूरी की यात्रा को नए स्‍वरूप में परिभाषित किया है।
2×25 kV AC ट्रैक्शन सिस्टम को अपनाना एक महत्‍वपूर्ण उपलब्धि है। ऊर्जा संचरण को अनुकूलित करके, यह तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की मांगों को पूरा करते हुए लंबी और भारी ट्रेनों को सपोर्ट करता है। हाइड्रोजन फ्यूल सेल और बैटरी से चलने वाले इंजनों पर शोध भारतीय रेल के सतत नवाचार के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
आगे की राह : उत्प्रेरक के रूप में विद्युतीकरण: भारतीय रेल विद्युतीकरण के 100 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा है, अतीत की उपलब्धियाँ एक महत्वाकांक्षी भविष्य के लिए खाका तैयार करती हैं। 2025 तक 97% से ज़्यादा नेटवर्क के विद्युतीकरण के साथ, अब सभी मार्गों पर विद्युतीकरण को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। रेल प्रौद्योगिकी में अग्रणी देशों के साथ सहयोग और स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास में निवेश, इस यात्रा के अगले अध्याय को आकार देने का वादा करता है।
भाप से बिजली तक का सफ़र सिर्फ़ इंजनों की कहानी नहीं है, बल्कि लचीलेपन, सरलता और दूरदर्शिता की कहानी है। प्रत्येक तकनीकी छलांग ने देश के परिवहन ढांचे को मज़बूत किया है, पर्यावरण पर इसके प्रभाव को कम किया है और वैश्विक स्तर पर इसकी स्थिति को बढ़ाया है। विद्युतीकरण के फलस्‍वरूप भारत की रेल पटरियाँ रोशन होने के साथ ही वे एक टिकाऊ और समृद्ध भविष्य का मार्ग प्रशस्‍त करती है।

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