~80 बिलियन डॉलर की बंदरगाह परियोजनाएं और 2.5 बिलियन डॉलर की मत्स्य पालन को बढ़ावा: डॉ. जितेन्द्र सिंह ने संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में समुद्री विकास को प्रदर्शित किया
~तट से गहरे समुद्र तक: भारत ने यूएनओसी3 में बहुआयामी महासागर रणनीति का अनावरण किया
~सामुद्रिक अर्थव्यवस्था तटीय विकास को बढ़ावा देती है : भारत ने वैश्विक मंच पर एकीकृत महासागर विकास मॉडल प्रस्तुत किया
New Delhi, Jun 10, संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने वैश्विक महासागर समझौते पर जोर दिया।
आधिकारिक सूत्रों ने आज बताया कि भारत ने फ्रांस के नीस में आयोजित तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (यूएनओसी3) में महासागरीय स्वास्थ्य पर तत्काल वैश्विक कार्रवाई का आह्वान किया। सम्मेलन में केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने वैश्विक महासागर समझौते पर जोर दिया और गहरे समुद्र में अन्वेषण, समुद्री प्लास्टिक की सफाई और टिकाऊ मत्स्य पालन क्षेत्र में उठाए जाने वाले प्रमुख कदमों का अनावरण किया।
भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने डीप ओशन मिशन के आगामी मानवयुक्त पनडुब्बी, राष्ट्रव्यापी एकल-उपयोग प्लास्टिक प्रतिबंध और 80 बिलियन डॉलर से अधिक की सामुद्रिक अर्थव्यवस्था परियोजनाओं की प्रगति को रेखांकित किया। भारत ने बीबीएनजे समझौते के त्वरित समर्थन पर भी जोर दिया, कानूनी रूप से बाध्यकारी वैश्विक प्लास्टिक संधि की वकालत की और वैश्विक समुद्री क्षेत्र में अपने बढ़ते प्रभुत्व को रेखांकित करते हुए ‘एसएएचएवी’ डिजिटल महासागर डेटा पोर्टल लॉन्च किया।
फ्रांस और कोस्टा रिका द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस सम्मेलन को संबोधित करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने सतत विकास लक्ष्य 14: जल के नीचे जीवन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने बताया कि किस तरह भारत की पहल का उद्देश्य विज्ञान, नवोन्मेषण और समावेशी साझेदारियों के माध्यम से महासागर क्षरण को रोकना है।
सम्मेलन का एक मुख्य आकर्षण डीप ओशन मिशन की ‘समुद्रयान’ परियोजना की प्रगति थी, जिसके तहत 2026 तक भारत की पहली मानवयुक्त पनडुब्बी तैनात किए जाने की उम्मीद है। इस परियोजना का उद्देश्य 6,000 मीटर तक की समुद्री गहराई का अन्वेषण करना है। इसे भारत की वैज्ञानिक क्षमता में एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है।
डॉ. जितेन्द्र सिंह ने भारत के समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के विस्तार की भी चर्चा की, जो अब विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र के 6.6 प्रतिशत हिस्से को कवर करता है और वैश्विक जैव विविधता लक्ष्यों में योगदान देता है।
समुद्री प्रदूषण के मुद्दे पर डॉ. सिंह ने ‘स्वच्छ सागर, सुरक्षित सागर’ अभियान के ठोस परिणामों की ओर इंगित किया, जिसके तहत भारत के 1,000 किलोमीटर से अधिक तटीय क्षेत्र को साफ किया गया है और 2022 से अब तक 50,000 टन से अधिक प्लास्टिक कचरे को हटाया गया है। समुद्री कचरा नीति का मसौदा तैयार कर लिया गया है और भारत कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संरचना के उद्देश्य से वैश्विक प्लास्टिक संधि पर वार्ता का समर्थन करना जारी रखेगा।
सागरमाला कार्यक्रम और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के नेतृत्व में भारत के समुद्री अर्थव्यवस्था प्रयासों को भी प्रदर्शित किया गया। 80 बिलियन डॉलर की लागत वाली 600 से अधिक बंदरगाह-आधारित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को प्रचालित किया गया है और मत्स्य पालन क्षेत्र के आधुनिकीकरण में 2.5 बिलियन डॉलर का निवेश किया गया है। सरकार ने 2022 में पिछले संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन के बाद से मछली उत्पादन में 10 प्रतिशत की वृद्धि और 1,000 से अधिक मछली किसान उत्पादक संगठनों के गठन की सूचना दी।
जलवायु गतिशीलता पर जोर देते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने 10,000 हेक्टेयर से अधिक मैंग्रोव वनों की बहाली और प्रकृति-आधारित समाधानों का उपयोग करके तटरेखा प्रबंधन योजनाओं के कार्यान्वयन का उल्लेख किया। भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान में महासागर आधारित जलवायु कार्रवाइयों को भी एकीकृत किया है।
वैश्विक महासागर क्षेत्र में भारत की बढ़ती भूमिका फ्रांस और कोस्टा रिका के साथ ‘ब्लू टॉक्स’ में इसके सह-नेतृत्व और समुद्री योजना निर्माण पर भारत-नॉर्वे सत्र जैसे उच्च-स्तरीय कार्यक्रमों में इसकी सक्रिय भागीदारी के माध्यम से स्पष्ट हुई। सम्मेलन के दौरान ‘एसएएचएवी’ पोर्टल का शुभारंभ पारदर्शी, विज्ञान-आधारित महासागर प्रबंधन को बढ़ावा देने में इसकी भूमिका को और बढ़ाता है।
एक मजबूत ‘नाइस महासागर कार्य योजना’ की अपील करते हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से नवोन्मेषण में निवेश करने, बीबीएनजे समझौते की पुष्टि करने और प्लास्टिक संधि को अंतिम रूप देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “महासागर हमारी साझा विरासत और उत्तरदायित्व है।” उन्होंने कहा कि भारत सभी हितधारकों- सरकारों, निजी क्षेत्र, सिविल सोसायटी और स्वदेशी समुदायों के साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार है, जिससे कि एक स्थायी महासागरीय भविष्य सुनिश्चित किया जा सके।
यूएनओसी3 में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की सहभागिता एक स्पष्ट संदेश देती है: भारत न केवल एक तटीय राष्ट्र के रूप में, बल्कि वैश्विक महासागर नीति को आकार देने में एक सक्रिय देश के रूप में अपनी स्थिति मजबूत बना रहा है।