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~अखिल भारतीय (पैन इंडिया) सिनेमा कोई मिथक नहीं है; फिल्म उद्योग के दिग्गजों ने भारतीय सिनेमा में एकता पर जोर दिया
~अनुपम खेर ने कोविड के बाद सिनेमा उपयोग के बदलते रुझान पर प्रकाश डाला
~जब आप हमारी साझा विरासत, हमारे गीतों, हमारी कहानियों, हमारी मिट्टी का सम्मान करते हैं, तो आपकी फिल्म भारतीय सिनेमा बन जाती है: खुशबू सुंदर
Mumbai, Maharashtra, May 02, अखिल भारतीय (पैन इंडिया) सिनेमा कोई मिथक नहीं है; फिल्म उद्योग के दिग्गजों ने भारतीय सिनेमा में एकता पर जोर दिया गया।

मुंबई के जियो वर्ल्ड सेंटर में आयोजित विश्व श्रृव्य दृश्य विजुअल और मनोरंजन शिखर सम्मेलन, वेव्स 2025 में “पैन-इंडियन सिनेमा: मिथक या गति” शीर्षक से एक प्रेरक पैनल चर्चा आयोजित की गई ।नमन रामचंद्रन द्वारा संचालित इस सत्र में भारतीय फिल्म उद्योग की चार प्रतिष्ठित हस्तियां नागार्जुन, अनुपम खेर, कार्थी और खुशबू सुंदर एक बेहतरीन चर्चा के लिए एक साथ आईं।

सुश्री खुशबू सुंदर ने दर्शकों को याद दिलाया कि सिनेमा की ताकत उसकी भावनात्मक प्रतिध्वनि में निहित है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बॉलीवुड और क्षेत्रीय फिल्म उद्योगों के बीच कोई विभाजन नहीं होना चाहिए, क्योंकि भारतीय फिल्में सभी भारतीयों के साथ जुड़ने के इरादे से बनाई जाती हैं। उन्होंने कहा, “जब आप हमारी साझा विरासत, हमारे गीतों, हमारी कहानियों, हमारी मिट्टी का सम्मान करते हैं, तो आपकी फिल्म क्षेत्रीय या राष्ट्रीय नहीं रह जाती, वह भारतीय सिनेमा बन जाती है और यही वह चीज है जो सब कुछ ठीक कर देती है।”

श्री नागार्जुन ने भारत की फिल्म निर्माण परंपराओं को एक साथ जोड़ने वाली समृद्ध सांस्कृतिक ताने-बाने का उल्लेख करते हुए इस भावना को दोहराया। उन्होंने असंख्य भाषाओं, रीति-रिवाजों और परिदृश्यों के बारे में बात की जो कहानीकारों को प्रेरित करते हैं। उन्होंने उपस्थित लोगों को याद दिलाया कि अपनी जड़ों पर गर्व करना रचनात्मकता को बाधित नहीं करता है बल्कि यह इसे मुक्त करता है और यही भारतीय सिनेमा का असली सार है।

श्री अनुपम खेर ने कहा कि किस तरह कोविड-19 महामारी ने सिनेमा देखने के व्यवहार को बदल दिया है। उन्होंने बताया कि कैसे दर्शकों ने अलग-अलग स्रोतों से फ़िल्में देखना शुरू किया और यह अलग-अलग क्षेत्रों के सिनेमा के बारे में नहीं है, बल्कि सिर्फ़ भारत के सिनेमा के बारे में है। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि किसी को भी अपनी कला और कौशल में सच्चा और ईमानदार होना चाहिए, “चाहे आप बड़े पर्दे पर कोई पौराणिक गाथा प्रसारित कर रहे हों या जीवन के किसी हिस्से से जुड़ा नाटक खेल रहे हों, कहानी कहने में ईमानदारी आपकी सबसे बड़ी सहयोगी है। दर्शक तमाशा देखना चाह सकते हैं, लेकिन वे हमेशा ईमानदारी की सराहना करेंगे और यही बात फ़िल्मों पर भी लागू होती है।”

श्री कार्थी ने पैनल चर्चा में जीवन से भी बड़े अनुभवों के लिए लोगों की बढ़ती जिज्ञासा पर भी बात की। उन्होंने कहा कि आज दर्शकों के पास विविधतापूर्ण विषय-वस्तु उपलब्ध है, लेकिन वे अभी भी गीत-नृत्य के जादू और वीरतापूर्ण महाकाव्यों के लिए सिनेमाघरों की ओर आकर्षित होते हैं।

पैनलिस्टों ने चर्चा के दौरान “क्षेत्रीय” फिल्मों की धारणा से आगे बढ़ने और भारतीय फिल्मों के विचार को अपनाने के महत्व के बारे में बात की। उन्होंने भावनाओं, ईमानदारी पर जोर देते हुए कहा कि भारतीय सिनेमा की असली ताकत विभाजन में नहीं, बल्कि हमारी मिट्टी में निहित एकता में निहित है, और यही वह गति है जो भारतीय सिनेमा को आगे ले जाएगी।

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