~पिछले दशक में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में हिंदी को बढ़ावा देने की सरकार की प्रतिबद्धता ने कई दीर्घकालिक अंतराल को भरने में मदद की हैव्यापक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी हितधारकों के सतत प्रयास जरूरी हैं
New Delhi, Apr 28, केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) तथा प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने सामूहिक जिम्मेदारी का आह्वान करते हुए आज इस बात पर जोर दिया कि सरकारी कामकाज में हिंदी को बढ़ावा देना केवल कुछ विभागों का काम नहीं है, बल्कि यह समाज की साझा जिम्मेदारी है।
कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय द्वारा आयोजित “हिंदी सलाहकार समिति” की बैठक में डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि यद्यपि हिंदी के प्रयोग को बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति हुई है, फिर भी व्यापक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी हितधारकों की ओर से निरंतर प्रयास आवश्यक हैं।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पिछले दशक में प्रगति हुई है जिसने हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता की कुछ खामियों को दूर करने में मदद की है। उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक रूप से अनेक लोगों की मातृभाषा होने के बावजूद, हिंदी को आधिकारिक संचार में वह औपचारिक स्वीकृति नहीं मिली, जिसकी वह हकदार थी। उन्होंने कहा, “पहले, हिंदी में पत्र प्राप्त करना या भेजना काफी मुश्किल था और यहां तक कि प्राप्तकर्ता भी हिंदी में पत्र स्वीकार करने में संकोच करते थे, लेकिन अब यह मानसिकता धीरे-धीरे बदल गई है।”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव इसकी व्यापक स्वीकार्यता के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने दक्षिण भारत के उदाहरण दिए, जहां नई पीढ़ी हिंदी सीखने के लिए तेजी से उत्सुक है। उन्होंने कहा, “तीसरी पीढ़ी के बच्चे स्वाभाविक रूप से हिंदी को अपना रहे हैं, जो सकारात्मक सांस्कृतिक बदलाव का संकेत है।”
उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों ने अपनी भाषाओं को संरक्षित रखा है। इसी तरह, हिंदी को बढ़ावा देने के भारत के प्रयासों को यांत्रिक अनुवाद अभ्यासों के बजाय गर्व और निरंतर अभ्यास पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि अनुवाद का उद्देश्य केवल अंग्रेजी शब्दों को हिंदी शब्दों से बदलने के बजाय संचार की भावना और तकनीकी सार को संरक्षित करना होना चाहिए।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने हिंदी को बढ़ावा देने में आने वाली व्यावहारिक चुनौतियों की भी चर्चा की, जिनमें कुछ क्षेत्रों में योग्य शिक्षकों की कमी और प्रशासनिक बाधाएं शामिल हैं। उन्होंने अधिक गतिशील भागीदारी का सुझाव देते हुए, समिति के सदस्यों और हितधारकों को औपचारिक बैठकों से आगे बढ़कर नियमित संचार और व्यावहारिक पहलों के माध्यम से सक्रिय रूप से योगदान देने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा, “केवल दिन-प्रतिदिन की वास्तविक प्रतिबद्धता के माध्यम से ही हम शासन के सभी क्षेत्रों में हिंदी को सही मायने में मुख्यधारा में ला सकते हैं।”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने अपने संबोधन के समापन पर सभी संस्थानों में हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अभिनव तरीकों का आह्वान किया और सभी हितधारकों से आग्रह किया कि वे इस प्रयास में खुद को सक्रिय योगदानकर्ता के रूप में देखें। उन्होंने सदस्यों के सुझावों का स्वागत करते हुए दोहराया कि उनके सुझाव भविष्य की नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।