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New Delhi, Sep 08, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज सभी से कम से कम एक व्यक्ति को साक्षर बनाने का संकल्प लेने का आह्वान किया है।
श्री धनखड़ ने कहा, “जब हम किसी को साक्षर बनाते हैं, तो हम उसे मुक्ति देते हैं, हम उस व्यक्ति को स्व की खोज करने में मदद करते हैं, हम उसे सम्मान का एहसास कराते हैं, हम निर्भरता को कम करते हैं, हम स्वतंत्रता और एक-दूसरे पर निर्भरता पैदा करते हैं। यह व्यक्ति को खुद की मदद करने में सक्षम बनाता है। यह हाथ थामने का सर्वोच्च पहलू है।”

नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने आज रेखांकित किया, “किसी व्यक्ति को शिक्षित करके आप जो खुशी और आनंद प्रदान करते हैं, चाहे वह पुरुष हो, महिला हो, बच्चा हो या लड़की हो, वह असीम है। आप कल्पना भी नहीं कर सकते कि इससे आपको कितनी खुशी मिलेगी। यह सकारात्मक तरीके से फैलेगा। यह मानव संसाधन विकास में आपकी ओर से की जा सकने वाली सबसे बड़ा सकारात्मक कार्य होगा।”
अपने संबोधन में उन्होंने सभी से साक्षरता को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम मिशन मोड में जल्द से जल्द 100% साक्षरता सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्धता और जुनून के साथ काम करें। उन्होंने कहा कि उन्हें यकीन है कि यह लक्ष्य हमारी सोच से भी पहले हासिल किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति एक व्यक्ति को साक्षर बनाए, यह विकसित भारत के लिए एक महत्वपूर्ण योगदान होगा।
उन्होंने आगे कहा, “शिक्षा एक ऐसी चीज है, जिसे कोई चोर आपसे छीन नहीं सकता। कोई सरकार इसे आपसे छीन नहीं सकती। न तो रिश्तेदार और न ही दोस्त इसे आपसे छीन सकते हैं। इसमें कोई कमी नहीं आ सकती। यह तब तक बढ़ती रहेगी और बढ़ना जारी रखेगी, जब तक आप इसे साझा करते रहेंगे।” उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यदि साक्षरता को जुनून के साथ आगे बढ़ाया जाए, तो भारत नालंदा और तक्षशिला की तरह शिक्षा के केंद्र के रूप में अपना प्राचीन दर्जा पुनः प्राप्त कर सकता है।
उन्होंने शिक्षा नीति (एनईपी) को अभी तक नहीं अपनाने वाले राज्यों से अपने रुख पर पुनर्विचार करने की अपील करते हुए इस बात पर जोर दिया कि यह नीति देश के लिए एक बड़ा बदलाव लाने वाली है। उन्होंने कहा, “यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति हमारे युवाओं को उनकी प्रतिभा और ऊर्जा का पूरा उपयोग करने का अधिकार देती है, जिसमें सभी भाषाओं को उचित महत्व दिया गया है।”
मातृभाषा के विशेष महत्व पर प्रकाश डालते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि यह वह भाषा है, जिसमें हम सपने देखते हैं। उन्होंने भारत की अद्वितीय भाषाई विविधता पर जोर देते हुए कहा, “भारत जैसा दुनिया में कोई देश नहीं है। भाषा की समृद्धि के मामले में हम एक अनूठे राष्ट्र हैं, जिसमें कई भाषाएँ मौजूद हैं।”
राज्यसभा के सभापति के रूप में अपने अनुभवों के बारे में उन्होंने कहा कि सदस्यों को 22 भाषाओं में बोलने का अवसर दिया जाता है। उन्होंने कहा, “जब मैं उन्हें उनकी भाषा में बोलते हुए सुनता हूँ, तो मैं अनुवाद सुनता हूँ, लेकिन उनकी शारीरिक भाषा ही मुझे बता देती है कि वे क्या कह रहे हैं।”
उन्होंने भारतीय संस्कृति में ऋषि परंपरा के गहन महत्व पर भी प्रकाश डाला और सभी से आग्रह किया कि वे “छह महीने के भीतर कम से कम एक व्यक्ति को साक्षर बनाने का संकल्प लें, ताकि साल के अंत तक हम दो व्यक्तियों को शिक्षित करने का लक्ष्य प्राप्त कर सकें।”
पिछले दशक में भारत की परिवर्तनकारी प्रगति की सराहना करते हुए, श्री धनखड़ ने इस बात पर जोर दिया कि कैसे हर घर में बिजली पहुंचाने जैसी उपलब्धियां, जो कभी अकल्पनीय थीं, अब एक वास्तविकता हैं और भविष्य के लक्ष्य सौर ऊर्जा के माध्यम से आत्मनिर्भरता पर केंद्रित हैं। उन्होंने ग्रामीण विकास पर विचार किया, हर घर में शौचालय और व्यापक डिजिटल संपर्क-सुविधा जैसे महत्वपूर्ण कदमों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे दूरदराज के गांवों में 4 जी की पहुंच ने सेवा अदायगी में क्रांति ला दी है, जिससे दैनिक काम आसान हो गए हैं और आवश्यक सेवाओं के लिए लंबी कतारों की जरूरत खत्म हो गई है।
हमारे संस्थानों को कलंकित करने और नीचा दिखाने वाले लोगों के खिलाफ चेतावनी देते हुए, श्री धनखड़ ने उन गुमराह व्यक्तियों को रास्ता दिखाने का आग्रह किया, जो भारत के प्रभावशाली विकास को स्वीकार करने में सक्षम नहीं हैं और जमीनी हकीकत को पहचान नहीं रहे हैं।
इस अवसर पर शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी, स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग (डीओएसईएल) के सचिव संजय कुमार और अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।

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